काश! ज़िंदगी किसी तालीम का हिस्सा होती
कम-से-कम इम्तिहान की तारीख़ तो पता होती
नामुमकिन है माँ-बाप का एक भी क़र्ज़ चुका पाना
कम-से-कम किसी क़र्ज़ की एक किश्त तो अदा होती
काश ! ज़िंदगी किसी तालीम का हिस्सा होती कम - से - कम इम्तिहान की तारीख़ तो पता होती नामुमकिन है माँ - बाप का एक भी क़...